Monday, October 18, 2010

जिंदगी

जैसे तैसे ही चलती है
मैंने देखा है इसे

वश में नहीं यह जीने वाले के
थोड़ा तुम्हारे थोड़ा जग के
बाकी ऊपरवाले के हाथ में खेलती है
मैंने देखा है इसे

अनजाना रहस्य है
कभी नवयौवना के खुले लहराते केश से
खिले निर्द्वंद स्वच्छंद
कभी असूझ अबूझ पहेली
मैंने देखा है इसे

फिर भी सुख है आनंद है
जीने में इसके साथ
स्वार्थ भी है
कि समय हाथ से सरक न जाय
प्रभु ने बहुत थोड़ा दिया है जीने को
जिंदगी ।
........अरुण
१८ अक्तूबर २०१०