जैसे तैसे ही चलती है
मैंने देखा है इसे
वश में नहीं यह जीने वाले के
थोड़ा तुम्हारे थोड़ा जग के
बाकी ऊपरवाले के हाथ में खेलती है
मैंने देखा है इसे
अनजाना रहस्य है
कभी नवयौवना के खुले लहराते केश से
खिले निर्द्वंद स्वच्छंद
कभी असूझ अबूझ पहेली
मैंने देखा है इसे
फिर भी सुख है आनंद है
जीने में इसके साथ
स्वार्थ भी है
कि समय हाथ से सरक न जाय
प्रभु ने बहुत थोड़ा दिया है जीने को
जिंदगी ।
........अरुण
१८ अक्तूबर २०१०
मैंने देखा है इसे
वश में नहीं यह जीने वाले के
थोड़ा तुम्हारे थोड़ा जग के
बाकी ऊपरवाले के हाथ में खेलती है
मैंने देखा है इसे
अनजाना रहस्य है
कभी नवयौवना के खुले लहराते केश से
खिले निर्द्वंद स्वच्छंद
कभी असूझ अबूझ पहेली
मैंने देखा है इसे
फिर भी सुख है आनंद है
जीने में इसके साथ
स्वार्थ भी है
कि समय हाथ से सरक न जाय
प्रभु ने बहुत थोड़ा दिया है जीने को
जिंदगी ।
........अरुण
१८ अक्तूबर २०१०