Sunday, November 8, 2009

परिभाषा

बादल
बादल
अपने समस्त कुनबे समेट
घिरकर छा जाता है
पूरे क्षितिज पर
पैदा करता है दहशत
गरज कर बरस कर
पर कब तक ?
अस्तित्व ही मिट जाता है
एक बार के प्रदर्शन में ।

आकाश
आकाश
दम्भी
शौहर
पृथ्वी के सर पर सवार
बस नीले भूरे लाल पीले
रंग बदलता
सूरज की तपन बारिश ओले आंधी
रोक न पाता
अपनी बड़प्पन दिखाने को
क्षितिज में पसरा रहता
आलसी दम्भी आकाश .


..........अरुण
( मार्च २००७ )

Thursday, October 29, 2009

गाड़ी आई
गाड़ी आई गाड़ी आई
मुन्नू आओ चुन्नू आओ
बड़े बड़े टोकरे लाओ
चाट चटपटे भरकर लाई
गाडी आई

गाड़ी आई गाड़ी आई
सप्पा आए बसपा आए
कांग्रेस भजप्पा आए
दलदल में से निर्दल आए
सबने अपनी दौड़ लगाई
गाड़ी आई

भजप्पा की पीठ पर बैठी माया की सरकार
बाएँ पोटा दाएं सोटा कस-कस करती वार
दुलुक दुलुक भजप्पा चलती चेहरा लहूलुहान
जलकर झुलस गयी सब उसकी वोटों की खलिहान
सत्ता की यह भूखी लिप्सा करा रही उससे बेहयाई
गाड़ी आई

मंत्री सांसद फूले फूली भ्रष्टाचार की हाँडी
जयललिता की काया चलती ममता जी की वाणी
अटल बिहारी बने मदारी महुअर अलग बजावैं
उनके साथ के बन्दर भालू अपने ही सुर गावैं
गया स्वदेसी तेल बेचने माल बिदेसी भरभर लाई
गाड़ी आई - कोकाकोला पेप्सी लाई - गाड़ी आई

पञ्च तत्त्व में पाँच वर्ष का मौका हुआ विलीन
जनता के उम्मीद की काया हो गई पूरी क्षीण
वादों से तो पल्टी मारे भूल गए हिंदुत्व
बंगारू सुखरामों के संग सत्ता मद में धुत्त
निकट चुनाव देखकर फ़िर से मन्दिर का झुनझुनवा लाई
गाड़ी आई - राम राज के सपने लाई - गाड़ी आई

सोनिया जी जो हिन्दी बोलें
लालू भईया अंग्रेजी
लट्ठ की बोल मुलायम बोलें
मारें फुफकार बहन जी
फुदक फुदक कर जोर लगाते
ख़ुद भी हैं भयभीत
इनकी दांव पेंच से जनता चारो खाने चित्त
बनी नेताइन नेता कट में
इटली की नन्मुनियाँ आई
गाड़ी आई
नही हैं नेता आज प्रणेता
अब है नया जमाना
सुरवा कनवां को धक्का मारा
पहुंचा ऐन्चाताना
जातपांत की बात पे
तुमने ही तो दी थी साथ
अब क्यों रोते हो जब
नेता धरन न देता हाथ
अपनी करनी अपने भोगो
नेता को नहि दोस गोसाईं
गाड़ी आई

............... अरुण
( फरवरी २००३ )




Friday, October 16, 2009

एक और दर्द - हिन्दी
मधुरा मनोहरा पुनीता है हिन्दी
शैशव की गीता संगीता है हिन्दी
हिन्दी है माटी की प्राकट्य प्रतिबिम्ब
देव भूमि संस्कृति की परिणीता है हिन्दी

सुनती है भारत वसुंधरा की धड़कन
सुख दुःख की अंतःकरण की है भाषा
आशा है राष्ट्र- उत्थान के कंटक पथ की
सजग सत्य पथ की अभिलाषा है हिन्दी

हिन्दी जो माता - सहोदर- सहपाठी है
सहचरी है पगपग पर प्रेरक हमारी
हमारी मुंह बोली सहेली अलबेली
अपने ही घर में परित्यक्ता - अकेली है
अंग्रेजी हरजाई के मद में सब डूबे है
हिंगलिश की घुटनों में सिसकती है हिन्दी
....... अरुण
(१२ सितम्बर २००५)

हिंदी दिवस के लिए 

Monday, June 15, 2009

दर्द
आरक्षण के डोर में फंसा समूचा तंत्र
औ बीच बीच में डांक के नेता फूकें मंत्र
नेता फूंकें मंत्र भले जनता चिल्लाये
जाति में बंट गए लोग देस भक्खद में जाए
कहै अरुण घबराय त्राहि त्राहि है हर क्षण
कुछ करो नहीं तो प्राण सोख लेगा आरक्षण ।
..................... अरुण
( १३ सितम्बर २००१)