शब्द
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते ?
फडफडाते हैं होंठ
अटक जाती जिह्वा
अभिव्यक्ति को तरस जाता है मन
पर सही समय पर
सही शब्द क्यूँ नहीं मिलते?
आदत पड़ गयी है लाचारियाँ सहने की
बिलबिलाते कसमसाते कराहते रहने की
मर गया है पुंसत्व
खो गया है स्वाभिमान
सूख गया है रक्त
खो दिया है जैसे अपना ही परिचय
नहीं है आभास कि प्रतिरोध क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते ?
शब्दों के समंदर में तैरते ही रहने की
आदत है उधर की इधर से कहने की
इसी के हैं अभ्यस्त
समाप्त हो गया है स्वत्व
मुखर है तृष्णा
मुरझा गयी है जैसे आत्मा की किसलय
सूखते जड़ को पुनः सिंचित क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते?
शब्दों के जाल - भ्रम का जंजाल
भ्रम के जंजाल में समस्त सुर ताल
खुली हैं आँखें
बंद है दृष्टि
मूक है स्वर
शून्य है चेतना वेदना है अविरल
काट कर जाल निकलने का प्रयास क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से .....?
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते ?
फडफडाते हैं होंठ
अटक जाती जिह्वा
अभिव्यक्ति को तरस जाता है मन
पर सही समय पर
सही शब्द क्यूँ नहीं मिलते?
आदत पड़ गयी है लाचारियाँ सहने की
बिलबिलाते कसमसाते कराहते रहने की
मर गया है पुंसत्व
खो गया है स्वाभिमान
सूख गया है रक्त
खो दिया है जैसे अपना ही परिचय
नहीं है आभास कि प्रतिरोध क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते ?
शब्दों के समंदर में तैरते ही रहने की
आदत है उधर की इधर से कहने की
इसी के हैं अभ्यस्त
समाप्त हो गया है स्वत्व
मुखर है तृष्णा
मुरझा गयी है जैसे आत्मा की किसलय
सूखते जड़ को पुनः सिंचित क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से क्यूँ नहीं मिलते?
शब्दों के जाल - भ्रम का जंजाल
भ्रम के जंजाल में समस्त सुर ताल
खुली हैं आँखें
बंद है दृष्टि
मूक है स्वर
शून्य है चेतना वेदना है अविरल
काट कर जाल निकलने का प्रयास क्यूँ नहीं करते
शब्द समय से .....?
...............................................अरुण
(वृहस्पतिवार,९ जून २००३. अनपरा )