परवाह किसे क्या पथ हो बस चलते जा रहे लोग !!
अभिव्यक्ति भी नहीं पीड़ा की अभ्यस्त हो चला जीवन अब
ये लाचारी है या फिर नाकामी बस चलते जा रहे लोग !!
क्या हो गया हवाओं को किसके संकेत से चलती हैं ?
झोकों को हवा का रुख समझे बस चलते जा रहे लोग !!
नज़र लग गयी जमाने को या ज़माना सचमुच बदल गया
या बदले जमाने को पकड़ने को बस चलते जा रहे लोग !!
तुम भी चलना सीख ही लो जैसे चलते जा रहे लोग !!
....................अरुण
वाराणसी
बुधवार, २१ सितम्बर, २०११.