Thursday, January 22, 2015

चाँद से ठिठोली


सुन्दर गोरे मुखड़े के पीछे
शातिर चालों का घेरा है
अपनी रूमानी भावों से
नित नयी नयी कलाओं से
मोहपाश धरती पर फेंके  
इस बाग में डाले डेरा है

चेहरे पर भोलापन ओढ़े
प्यारी धरती को लुभा रहा
इस चतुर चमकते तारे को
मत कहना चाँद तो भोला है
अंदर से ढींठ का पॉलीगौन
ऊपर से दिखता गोला है ।

धरती है व्याही सूरज से सूरज से ही सिंचित होती अस्तित्व है पृथ्वी का सूरज सूरज की किरणों से जीती परपुरुष बन रहा धूर्त चाँद धरती को रोज लुभाता है सूरज की अनुपस्थिति मे ही नित अँधियारे मे आता है बेहया घूमता देख चाँद पर पत्थर बच्चों ने मारा है तभी दाग है चेहरे पर यह चाँद तो बस आवारा है
.............................अरुण मंगलवार , 13 जनवरी 2015