Wednesday, January 15, 2014

सिंथेटिक दूध 

सिंथेटिक दूध सिंथेटिक दही
ग़ुम गयी जाने कहाँ 

असली गर्माहट रिश्तों की

मिल रही थोक में 

मुस्कान की सिंथेटिक दूध 

हंसी की सिंथेटिक दही ।

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अंजुरी से निकल नहीं पा रहा 
ओसार में रिस  रिस  के आता

अनचाहा
गंदे बाढ़ का तेज पानी

न चाहा फिर भी घुल  जाता  
मिल जाता  अपनी घर की माटी  में 
कींचड़  से सना  बाढ़  का पानी 

शनैः शनैः  फिर  
अब उसी की चमक 
दिखती है  
और  दिखता है

ढिठाई  भरे  उसके होठों  पर 

मुस्कान की सिंथेटिक दूध 
हंसी की सिंथेटिक दही ।
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............ अरुण 
बुधवार , 15 जनवरी 2014