सिंथेटिक दूध सिंथेटिक दही
ग़ुम गयी जाने कहाँ
असली गर्माहट रिश्तों की
मिल रही थोक में
मुस्कान की सिंथेटिक दूध
हंसी की सिंथेटिक दही ।
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अंजुरी से निकल नहीं पा रहा
ओसार में रिस रिस के आता
अनचाहा
गंदे बाढ़ का तेज पानी
न चाहा फिर भी घुल जाता
मिल जाता अपनी घर की माटी में
कींचड़ से सना बाढ़ का पानी
शनैः शनैः फिर
अब उसी की चमक
अब उसी की चमक
दिखती है
और दिखता है
और दिखता है
ढिठाई भरे उसके होठों पर
मुस्कान की सिंथेटिक दूध
हंसी की सिंथेटिक दही ।
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............ अरुण
बुधवार , 15 जनवरी 2014
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