Thursday, April 9, 2020

आसमान का पुच्छल तारा

बहुत बेचैनी होती है न
अकुलाहट भी कि
क्यों नही सहेज पाया
रिश्ते की ऐठन
क्यों देखते देखते
छटपटाते हाथों से
सरकता गया संबंधों की डोर
और फिर बिखर कर शांत
तारा टूट कर छटक गया
स्तब्ध आसमान
धीरे धीरे पटरी पर आती जिंदगी
बिना रिश्ते के भी
जीना सिखा ही जाती जिंदगी
अब डोर ही नही तो ऐंठन नही
आसमान अब भी आसमान है
बेचैनी भी अब नही है न...।
- अरुण
गुरुवार 9 अप्रैल , (चैत्र 2077)