आसमान का पुच्छल तारा
बहुत बेचैनी होती है न
अकुलाहट भी कि
क्यों नही सहेज पाया
रिश्ते की ऐठन
क्यों देखते देखते
छटपटाते हाथों से
सरकता गया संबंधों की डोर
और फिर बिखर कर शांत
तारा टूट कर छटक गया
स्तब्ध आसमान
धीरे धीरे पटरी पर आती जिंदगी
बिना रिश्ते के भी
जीना सिखा ही जाती जिंदगी
अब डोर ही नही तो ऐंठन नही
आसमान अब भी आसमान है
बेचैनी भी अब नही है न...।
- अरुण
गुरुवार 9 अप्रैल , (चैत्र 2077)
बहुत बेचैनी होती है न
अकुलाहट भी कि
क्यों नही सहेज पाया
रिश्ते की ऐठन
क्यों देखते देखते
छटपटाते हाथों से
सरकता गया संबंधों की डोर
और फिर बिखर कर शांत
तारा टूट कर छटक गया
स्तब्ध आसमान
धीरे धीरे पटरी पर आती जिंदगी
बिना रिश्ते के भी
जीना सिखा ही जाती जिंदगी
अब डोर ही नही तो ऐंठन नही
आसमान अब भी आसमान है
बेचैनी भी अब नही है न...।
- अरुण
गुरुवार 9 अप्रैल , (चैत्र 2077)
अब डोर ही नहीं तो ऐंठन भी नहीं। मन की वेदना को मानों शब्द मिल गये। आप अच्छा लिखते हैं। 2015 के बाद 2020 में?अपने भीतर के कवि को बाहर आने का मौका दें।
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद उमेश भाई
Deleteवाह वाह । सब एक से बद कर एक । लिखते रहिए सर।
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी ।
ReplyDeleteआते रहिये ब्लॉग पर । आपका स्वागत है ।