Monday, June 15, 2009

दर्द
आरक्षण के डोर में फंसा समूचा तंत्र
औ बीच बीच में डांक के नेता फूकें मंत्र
नेता फूंकें मंत्र भले जनता चिल्लाये
जाति में बंट गए लोग देस भक्खद में जाए
कहै अरुण घबराय त्राहि त्राहि है हर क्षण
कुछ करो नहीं तो प्राण सोख लेगा आरक्षण ।
..................... अरुण
( १३ सितम्बर २००१)

1 comment:

  1. आरक्षण से हो रही पीड़ा को बहुत खूबसूरती से आप ने प्रतिबिम्बित किया है..बधाई .

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