Sunday, February 14, 2010

चरैवेति
जिंदगी
इतनी लम्बी जिंदगी
इसे क्षणभंगुर कैसे कहते हो
तिल तिल सरकती जिंदगी
ऊपर नीचे फिसलती जिंदगी
कभी तैरती कभी छलांग लगाती जिंदगी
क़दमों तले झुकती काल चक्र में पिसती
भूख से कसमसाती दर्द से कराहती
मृत्यु आने तक प्रतीक्षा करती
जीती !
लम्बी जिंदगी
क्षणभंगुर कैसे हो सकती है !
जीने की कला नहीं आती
जिंदगी से ही शिकायत हो गयी!
यह हो गयी क्षणभंगुर
और संसार माया हो गयी!
माया से निकलोगे?
मया जाल तोड़ कर भागोगे?
भागो कितना भागोगे
उलझते जाओगे!
क्योंकि यही सत्य है !
माया-जाल जाल नहीं
शाश्वत सत्य है !
यह है - तो - हम हैं
हम हैं तो धर्म है
हम हैं तो ईश्वर है
हम हैं तभी पूरा ब्रह्माण्ड है
नहीं तो
कौन देखेगा सोचेगा बतायेगा ?
कि धर्म क्या ईश्वर क्या ब्रह्माण्ड क्या !
ईश्वर हमारा - ऋणी है - हम उसके
दोनों सत्य है
जिंदगी लम्बी है आओ जीना शुरू करें !!!
..............................अरुण 
(मंगलवार, २९ नवम्बर , २००५ )

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