हर दीपावली पर
झिलमिलाते जगमगाते दिए
जो उल्लास - प्रसन्नता से परिपूर्ण करते थे
...
पटाखे फुलझरियां जो मन को रोमांचित करते थे
इस दीवाली पर
उदास वेदना आच्छादित कर रही हैं
जिसके सानिध्य और संरक्षण में
अब तक दीवाली मनाते रहे
दीपावली पूजा का टीका हम सबके माथे पर लगाने वाले
और दीवाली मनवाने वाले
पू पिता जी
की प्रथम अनुपस्थिति
मन को असहज पीड़ा दे रही है
इस लिए इस दीपावली पर
प्रार्थना
बस प्रार्थना।
................................अरुण
(दीपावली २०१०, ५ नवम्बर को )
मेरे पिता जी भी दीपावली के १५ दिन बाद हि ... इस विधाता को प्यारे हुए थे .... मुझे भी बहुत सताती है दिवाली! बहुत हि अच्छी कविता आपने लिखी है भावों को पिरोया है बखूबी|
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