***** क्यूँ लिखूं ?*****
क्यूँ लिखूं क्या लिखूं क्या क्या लिखूं
प्रजा के रंज राजा के रंग या सत्ता की जंग पर रुबाइयां लिखूं
लिख डालूं गाथा उदास राष्ट्रभाषा के पीड़ा की
अंग्रेजी के सरपरस्तों को हिंदी में गालियाँ लिखूं
गुनगुनाइए अपने ही गीत मूँद आँख जमाने से
ज़माना गुज़रता है तो क्या ज़माने की परछाइयां लिखूं
साथ का घर था साथ थे हम फिर न जाने क्या हुआ
भाई का भाई पे ग्रहण का वाकया लिखूं
लिखूं राजनेताओं को बस और बस लानत
इटली की रानी का भरतकुमार पर पुचकारियाँ लिखूं
धधकते हैं शोले नगर नगर फट रहे बम और गोले
संस्कृति परिवर्तन युद्ध है ये आपको चुनौतियां लिखूं
भारत मातरिवंदना है राष्ट्रगीत वन्देमातरम
विरोधी राष्ट्रद्रोही हैं उन्हें तो बस फांसियां लिखूं
लड़ाई यह अपनी है स्वयं लड़कर जीतना है
पराये मुल्कों को क्यूँ अपनी परेशानियां लिखूं
विजय प्राप्त होगी तूफानी अंधियारी रातों पर
अरुणोदय पर अम्बर में नए सूरज की किलकारियां लिखूं
धरती के हर कोने में आसमान तक गूंजे स्वर हिंदी
अरुण के संग हिंदी हिन्दुस्थान की वाहवाहियां लिखूं ///***///
******** ******** ********
..........................अरुण
( बुधवार १३ सितम्बर २००६)
हिंदी दिवस के लिए
क्यूँ लिखूं क्या लिखूं क्या क्या लिखूं
प्रजा के रंज राजा के रंग या सत्ता की जंग पर रुबाइयां लिखूं
ऐसा लिखूं कुछ जो मिले तेरी वाहवाहियाँ ?
तो आपके प्रशस्ति में कुछ अपनी ही खामियां लिखूं
तो आपके प्रशस्ति में कुछ अपनी ही खामियां लिखूं
लिख डालूं गाथा उदास राष्ट्रभाषा के पीड़ा की
अंग्रेजी के सरपरस्तों को हिंदी में गालियाँ लिखूं
गुनगुनाइए अपने ही गीत मूँद आँख जमाने से
ज़माना गुज़रता है तो क्या ज़माने की परछाइयां लिखूं
साथ का घर था साथ थे हम फिर न जाने क्या हुआ
भाई का भाई पे ग्रहण का वाकया लिखूं
लिखूं राजनेताओं को बस और बस लानत
इटली की रानी का भरतकुमार पर पुचकारियाँ लिखूं
धधकते हैं शोले नगर नगर फट रहे बम और गोले
संस्कृति परिवर्तन युद्ध है ये आपको चुनौतियां लिखूं
भारत मातरिवंदना है राष्ट्रगीत वन्देमातरम
विरोधी राष्ट्रद्रोही हैं उन्हें तो बस फांसियां लिखूं
लड़ाई यह अपनी है स्वयं लड़कर जीतना है
पराये मुल्कों को क्यूँ अपनी परेशानियां लिखूं
विजय प्राप्त होगी तूफानी अंधियारी रातों पर
अरुणोदय पर अम्बर में नए सूरज की किलकारियां लिखूं
धरती के हर कोने में आसमान तक गूंजे स्वर हिंदी
अरुण के संग हिंदी हिन्दुस्थान की वाहवाहियां लिखूं ///***///
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..........................अरुण
( बुधवार १३ सितम्बर २००६)
हिंदी दिवस के लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteधधकते हैं शोले नगर नगर फट रहे बम और गोले
संस्कृति परिवर्तन युद्ध है ये आपको चुनौतियां लिखूं
भारत मातरिवंदना है राष्ट्रगीत वन्देमातरम
विरोधी राष्ट्रद्रोही हैं उन्हें तो बस फांसियां लिखूं
अच्छी पंक्तियाँ है |
मेरी शुभकामनायें|
कुच्छ भी लिखो आप हमने तो बजानी ताली है
ReplyDeleteइतने प्यारे पिरोये हैं शब्द की हर बात निराली है
एक ही कविता मै सारा देश जेसे समां गया
हर शब्द धागे मै गूँथ के मोतियों की माला बना गया !
धन्यवाद मिनाक्षी जी
Delete"क्या लिखूं?"...."क्या लिखूं?"
ReplyDeleteसच में कई बार ऐसा होता है....
इतने विचार आने लगते हैं कि
समझ में नहीं आता की क्या लिखा जाये?
अपने ही इर्द-गिर्द इतने वाकये होते हैं कि
समझ नहीं आता कि क्या लिखा जाये?
लेकिन आपने "क्या लिखूं?"
"क्या लिखूं?"
कहते-कहते भी बहुत कुछ लिख डाला है....
शुक्रिया...
धन्यवाद पूनम जी.
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