Sunday, March 2, 2014

अनुत्तरित


अनुत्तरित  


बछिया गाय से दूध का हिसाब मांगे है 
बड़े ही गूढ गूढ सवालों के जवाब मांगे है ॥


एक तरफ हरियाली दूजे ओर रेगिस्तान क्यूँ 
उसी के पेंड पौधों ने धरती से जवाब मांगे है ॥


रास नहीं आता  छांव  अपनी हरी भरी धरती की 
हिमालय
हो दुरुस्त कैसे  इंडीज* से सुझाव मांगे है ॥ 

बच्चे को बाप की शकल मंजूर नहीं तभी तो 
कितने हैं गिनती में हिन्दू मुसलमान मांगे है ।।


पल्लवित हो पुष्प पहुंचे जब शोखियों के शिखर पर 
माली के ही सँजोये सारे सपने  सारे ख्वाब मांगे है ॥ 


बछिया गाय से दूध का हिसाब मांगे है 
बड़े ही गूढ गूढ सवालों के जवाब मांगे है ॥

.......... अ कु मिश्र  

(वाराणसी मार्च ०१ , २०१४)  


नोट : * इंडीज अमेरिका का एक विश्व प्रसिद्ध पर्वत

2 comments:

  1. Bahot hi deep poem hai papaji. Bahot hi acchi likhi hai.

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  2. ऐसा हिसाब मांगा है...जिसका कोई जवाब नहीं हो सकता। सुंदर कृति बन पड़ी है ।
    एक लाइन कहना चाहूंगी....
    कविताओं से और मेरे ब्लॉग से क्यों इतने दिन दूर रहे
    आपके ब्लॉग मित्र आपसे ये हिसाब मांगे हैं :D

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