Thursday, April 7, 2011

तंत्र

पहले राजा (हुआ करते) थे 
अब है लोकतंत्र  !
लोकतंत्र पर आच्छादित 
पल बढ़ रहे कई तंत्र 
पुलिस-तंत्र  प्रशासन-तंत्र   
मंत्री-तंत्र   मंत्री के सगे-संबंधी  तंत्र  
इस तंत्र में मंत्रमुग्ध -
तिरसठ साल से पड़ा लोकतंत्र  !

सुना है पुलिस तंत्र प्रसन्न है 
उनपर लक्ष्मी  मईया  कृपासन्न हैं 
प्रशासन शवासन में लेटा है 
इस तंत्र ने भी अच्छा समेटा है 


तंत्रों के तांते लगे हैं 
प्रधानी से संसद तक 
हर जगह नेताई के खांचे लगे हैं 
फिट होने की होड़ में संख्या बढती जाती है 
तंत्र बढा    नेता बढे
जनता सिमटी जाती है !!
      .........अरुण 
(वृहस्पतिवार ७ अप्रैल २०११)

6 comments:

  1. सुना है पुलिस तंत्र प्रसन्न है
    उनपर लक्षी मईया कृपासन्न हैं
    प्रशासन शवासन में लेटा है
    इस तंत्र ने भी अच्छा समेटा है
    ... aapne sahi likha hai

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  2. धन्यवाद रश्मि जी . मेरा नमस्कार भी स्वीकार कीजियेगा.

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  3. बहुत खूब कहा है आपने ...।

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  4. बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं अरून जी

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  5. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ........आपकी कविताओं मे सम सामयिक परिस्थितियों पर करारा व्यंग्य साफ-साफ दृष्टिगोचर होता है ......आप निस्संदेह काव्य जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र तथा प्रभावी हस्ताक्षर हैं ......

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