Wednesday, September 21, 2011

जमाना सचमुच बदल गया !!


मंजिल किधर नहीं खबर बस चलते जा रहे लोग !
परवाह किसे क्या पथ हो बस चलते जा रहे लोग !!


अभिव्यक्ति भी नहीं पीड़ा की अभ्यस्त हो चला जीवन अब 
ये लाचारी है  या फिर  नाकामी  बस चलते जा रहे लोग !! 


क्या हो गया हवाओं को  किसके संकेत से चलती हैं ?
झोकों को हवा का रुख समझे  बस चलते जा रहे लोग !!


नज़र  लग गयी जमाने को या ज़माना सचमुच बदल गया
या बदले जमाने को पकड़ने को बस चलते जा रहे लोग !!

जमाना  बहती गंगा  है   तुम भी  धो  लो  हाथ 
तुम भी चलना सीख ही लो जैसे चलते जा रहे लोग !!


....................अरुण 
वाराणसी 
बुधवार, २१ सितम्बर, २०११.

3 comments:

  1. Umda ghazal hai...samvendnaao ko jhakjhorne ke liye kaafi hai..
    "Naa dekho zamane ke rang-o-dhhang
    Naa seekho zamane ki baatein....
    Ab kahan hain dikhte ulfaton me rang
    Ab kahan milti hain pyaar ki saugaatein"

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  2. Replies
    1. koi nayi rachna nahi dikh rahi..btw maine ek nayi kavita post ki hai...apki rai jan-na chahti hoon.plz padh ke bataiye kaisi hai???

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