Tuesday, April 12, 2011

प्यास

प्यास 
ज्ञान की  प्राप्ति की 
नींद की    सुख की 
वैभव की  बाहुबल की 
पानी की !

कहानी की किताब में 
पानी था  प्यास के लिए  
पर प्यास की तास 
कैसे बढ़ती गयी 
कि पाने की लालसा 
प्यास में परिवर्तित होती गयी 
बुझती नहीं दो चार घूँट में 
सतत लपलपाती हैं इन्द्रियाँ 
दूसरे के हिस्से का भी 
छीन कर पीने को आतुर !

........अरुण  
( मंगलवार, १२ अप्रैल २०११)

8 comments:

  1. कहानी की किताब में
    पानी था प्यास के लिए
    पर प्यास की तास
    कैसे बढ़ती गयी
    कि पाने की लालसा
    प्यास में परिवर्तित होती गयी
    bahut hi gahan bhaw

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  2. प्यास तो प्यास है जब तक पूरी न होगी बढती ही जाएगी और प्यास न हो तो मंजिल पाने की ललक भी नहीं होगी | इसलिए इसको बनाये रखना बहुत जरुरी है जिससे इसे बुझाने का हम प्रयत्न हमेशा करते रहे | पर प्यास एसी हो जो दुसरे को आहात न करे | बहुत खुबसूरत शब्दों में पिरोई खुबसूरत रचना |

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  3. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.

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  4. mann ki santushti bahut hi aavashyak hai..aur usi ki kami hai...bahut hi behtareen abhivyakti..:)

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  5. …सतत लपलपाती हैं इन्द्रियां

    दूसरे के हिस्से का भी
    छीन कर पीने को आतुर !

    सच ! यह प्यास बहुत ख़तरनाक है …

    अच्छी रचना है ।
    ब्लॉग की अन्य रचनाओं को भी देखा है … साधुवाद !

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. धन्यवाद राजेंद्र जी . आप जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकार के कमेन्ट मिला.. मनोबल बढ़ता है.
      उम्मीद करता हूँ आप आते रहेंगे .

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  6. ' बहुत ही बढ़िया . ये प्यास अनवरत बढती जा रही है . इस पर कोई नियंत्रण नहीं न खुद का , न समाज का और न ही व्यवस्था का. साधुवाद '

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    1. धन्यवाद . आप का कमेन्ट मिला.. मनोबल बढ़ता है.
      उम्मीद करता हूँ आप आते रहेंगे .

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