खोलो मन के द्वार
डस लेगा संसार.
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को खुला ही रखना
बूढ़ा नाई युवा बैद? मत पास फटकना
सुन लो भाई राम दुहाई खोल के अपने कान
पढ़े लिखों की आज हो गयी अंग्रेजी पहचान
अंग्रेजी अधकचरी ही हो जमकर कर उपयोग
मान बढ़ेगी इज्जत होगी ऐसा समझ के बोल !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को बंद ही रखियो
घर के अन्दर की बात किसी से कभी न कहियो
नेता देखो - तुरत सलामी देना तू मत भूल
नेता मंत्री भड़क गए तो चुभ जायेगी शूल
सरकारी अफसर से बचना कभी न लेना पंगे
तेरी पानी कीचड होगी उसकी हर हर गंगे !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान तो कान है भाई
बीवी बच्चे बाप सभी मिल करें खिंचाई
निर्धनता का रोग ख्नूब है लटके रहते कंधे
खाज़ कोढ़ में होती जब मंहगाई मारे डंडे !
ज़ेब दिखाता ठेंगा निसिदिन पेट करे फ़रियाद
बीवी देती तानें ऊपर से कर्ज़े की मार !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को मारो गोली
उघड़े तन को नित टीवी में दिखलाती है गोरी
बेढंगी बेपर्दा करती धन चाहत की भूख
देस के हीरो बने नचनिये ! टीवी भी क्या खूब
इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने क्या नाच दिखाई
भारत माँ निर्वस्त्र हो गयी फिर भी शर्म न आयी !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को भूल ही जाओ
बस अपनी ही बोलो बोल के छू हो जाओ
राजनीति औ नेता बन गए गाली के पर्याय
फिर भी सौंपे उन्ही के हाथों लिखने अपना अध्याय
सांप को तुमने दूध पिलाया अब हो चला वो मोटा
घेर घेर के मारे देस को भष्टाचार का सोटा !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार ......
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार.....
.....अरुण
(रविवार २७ अगस्त २००८)